१५० देशों के डाक प्रशासनों ने डाक टिकट जारी किया जिसमें उनके जीवन के करीब हर पहलू को शामिल किया जा चुका है।

भारतीय  स्वाधीनता संग्राम की सबसे बड़ी हस्ती महात्मा गांधी के बारे में कई तरह के सवाल उठते हैं। खास तौर पर भारतीय जनमानस पर उनकी आखिर इतनी पकड़ कैसे बनी, इसे लेकर। जिस दौर में गांधीजी जी ने स्वाधीनता संग्राम की बागडोर थामी, भारत की दशा अलग थी। साक्षरता बहुत कम थी और संचार और परिवहन के साधनों की स्थिति भी बहुत कमजोर थी। फिर भी गांधीजी ने लोगों से जुड़ने के लिए तमाम साधनों का उपयोग किया। सीधे जुड़ने के लिए उन्होंने जितनी यात्राएं देश के सभी हिस्सों में की, वैसा कोई और नेता नहीं कर सका। इसी तरह अखबारों का उपयोग भी आंदोलन के लिए किया और एक और हथियार जिस पर लोगों की निगाह कम जाती है, वह चिट्ठियां थीं, जिसका लोगों से जुड़ाव के लिए जिस पैमाने पर गांधीजी ने किया वैसा आज तक शायद ही किसी ने किया हो ।


    गांधीजी हर तरह के लोगों से जीवंत संपर्क बनाए रखने और अपने विचारों के प्रसार के लिए लगातार चिट्टियों का उपयोग करते थे। वे छह भाषाओं में लिख सकते थे और दक्षिण भारतीय भाषाओं समेत ११ भाषाओं में हस्ताक्षर कर लेते थेयही नहीं वे दाहिने और बाएं दोनों ही हाथों से लिखने में अभ्यस्त थे। हालांकि उनके बाएं हाथ की लिखावट अधिक साफ-सुथरी थी। वे उजाले में भरी भीड़ के बीच में और जनसभाओं के चलने के दौरान ही नहीं अंधेरे में भी चिट्टियों का जवाब दे सकते थे। चिट्ठियों के सहारे उन्होंने दुनिया भर के तमाम दिग्गजों ही नहीं आम लोगों तक से संवाद बनाए रखा था। ये चिट्ठियां ही थीं, जिनकी बदौलत गांधीजी को अपने अभियान के लिए बहुत से बेहतरीन सहयोगी भी मिले।


  भारत ही नहीं दुनिया के तमाम हिस्सों में जिस तादाद में समय समय पर गांधीजी के पत्र मिलते रहते हैं और उनकी नीलामी तक होती है, उससे इस बात का अंदाज लगाया जा सकता है कि उन्होनें अपने बेहद व्यस्त जीवन के बाद भी कितनी बड़ी मात्रा में चिट्ठियां लिखी होंगी। देश के तमाम हिस्सों में वे यात्राएं करते हुए औसतन करीब १८ किमी रोज वे पैदल चलते थे। इस लिहाज से यह आकलन किया गया है कि १९१३ से १९४८ के दौरान वे करीब ७९ हजार किलोमीटर पैदल चले जो धरती का दो बार चक्कर लगाने के बराबर है।


    गांधीजी ने अपनी तमाम चिट्ठियां जेलों में रहते हुए लिखीं और तमाम विचित्र पतो के बावजूद उस दौरान डाक विभाग उन तक पहुंचाता रहा। यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि महात्मा गांधी की शहादत के बाद दुनिया भर से बड़ी से बड़ी हस्तियों से लेकर आम लोगों ने पत्रों के जरिए जितना शोक संदेश भारत सरकार को भेजा वह भी रिकार्ड ही है। राष्ट्राध्यक्षों से लेकर जार्ज ऑरवेल और एलबर्ट आइंस्टाइन से लेकर आम कार्यकर्ता तक ने। यही नहीं वे ही दुनिया के एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन पर १५० देशों के डाक प्रशासनों ने डाक टिकट जारी किया जिसमें उनके जीवन के करीब हर पहलू को शामिल किया जा चुका है।


  भारत ही नहीं महात्मा गांधी दुनिया के सबसे बड़े संचारकों में भी चोटी पर माने जाते हैं। उनकी लिखी तमाम चिट्रियां आज भी किसी न किसी रूप में चर्चा में रहती हैं। वे नए संदर्भो में गांधीजी की सोच पर प्रकाश डालती हैं। जिस व्यक्ति को संसार छोड़े छह दशक से अधिक बीत चुके हैं, उसके हाथ से लिखी चिट्ठियों की खुशबू आज भी बरकरार होना और उस पर चर्चा होते रहना कम हैरानी की बात नही है। लेकिन ये चिट्ठियां ही हैं जिन्होंने गांधी को बाकियों से बहुत संपन्न बनाया हुआ है।


    दरअसल गांधीजी ने जीवन का बड़ा हिस्सा बेहद सादगी और त्याग के साथ बिताया। उनके पास ऐसी सांसारिक वस्तुएं भी नहीं थी, जो उनकी मौत के बाद संग्रहालयों में रखी जा सकें। व्यक्तिगत उपयोग की नाम मात्र की चीजें थी जिनसे उनकी स्मृतियों को संग्रहालयों में रखा गया। इनमें चिट्ठियां, डाक टिकट और तस्वीरें, चरखा और कुछ गिनी चुनी वस्तुएं शामिल हैं। साबरमती से लेकर सेवाग्राम और तमाम जगहों पर यही स्थिति है। दिल्ली में राजघाट संग्रहालय में बड़ी संख्या में पुस्तकों, और उनके द्वारा संपादित अखबारो की फाइलों के अलावा गांधीजी के ३० हजार से अधिक चिट्टियों की प्रतिलिपियां खास आकर्षण है। वहीं कोलकाता के बैरकपुर गांधी भवन में २८ हजार चिट्ठियों की प्रतिलिपियां हैं। साबरमती आश्रम में तो चिट्टियों का विशाल संग्रह है।